यूनिट-१(१.१)
Link : https://youth.be/1PNVwstst7s
इस वीडियो क्लिप में हिंदी कविता : सन्नाटा, जो भवानी प्रसाद मिश्रा द्वारा लिखने में आई थी उसका सौरभ शुक्ला द्वारा आदर्श पठन किया गया है । इस कविता हमें वर्तमान से निकलकर किसी और दुनिया में ले जाती है और यह इस कविता की बहुत बड़ी खासियत है। यह कविता नीचे उपस्थित है।
सन्नाटा
तो पहले अपना नाम बता दूँ तुमको,
पर ख़ास बात डर की कुछ यहाँ नहीं है;
थी पागल के गीतों को वह दुहराती,
तब पागल आता और बताता बंसी,
रानी उसकी बंसी पर छुप कर गाती।
किसी एक दिन राजा ने यह देखा,
खिंच गई हृदय पर उसके दुख की रेखा,
वह भरा क्रोध में जाया और रानी से,
उसने माँगा इन सब सॉझों का लेखा।
रानी बोली पागल को जरा बुता दो,
मैं पागल हूँ, राजा, तुम मुझे भुला दो,
मैं बहुत दिनों से जाग रही हूँ राजा,
बंसी बजवा कर मुझे जरा सुलो दो।
यह राजा था हाँ, कोई खेल नहीं था,
रह गए किले के कमरे कमरे रोते,
तब में आया, कुछ मेरे साथी आए,
अब हम सब मिलकर करते हैं मनचीते।
पर कभी-कभी जब पागल आ जाता है,
नाता है रानी को, या गा जाता है:
तब मेरे उल्लू, सॉप और गिरगट पर
अनजान एक सकता-सा छा जाता है।
यूनिट-१(१.२)
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इस विडियो में मनीष सिसोदिया के द्वारा हिंदी का महत्व समझाते हुए हिंदी विषय पर हिंदी वक्तव्य प्रस्तुत किया है।
मनीष सिसौदिया कहते हैं कि बालक स्कूल में आते हैं और हम कहते हे कबीर पढ़ लो हम उसे कहते हैं पर पता नहीं चलता हम हिंदी क्यों पढ़ाते हूं ? क्या हिंदी विषय के रूप में पढ़ते हैं या भाषाओं के रूप में ? हम कोई भी विषय पढ़ाते हैं तो उसके पीछे इस का लक्ष्य होता है।
हिंदी का माध्यम ईतना छोटा नहीं है। हम उसके करियर में बांध के किसीके सामने रख दें। यह हिंदी की महिमा है। हिंदी का उद्देश्य क्या है वह समझना ज़रूरी हैं। हिंदी को सूचीबदध होना जस्पी है हम सब कोच मिलकर सूचीबदध करना पड़ेगा । हिंदुस्तान में हिंदी दिन मनाने कभी जरूरत नहीं पढ़ेगी। हिंदी पढ़ने के लिए दिशा नहीं है। हिंदी समाज को बड़ी करने के लिए पढ़ाई जाती है। लक्ष्य को निर्धारित करना जरूरी है। तभी हमारा हिंदी दिवस मनाना सार्थक होगा। जो कुछ हम पढ़ते हैं उसका आपस में संबंध हम । उसको बनाने का काम हम भाषा से करते हैं। हिंदी हमारे-आपके जीवन सैनी है हिंदी हमारी भाषा नहीं है। यह बार इस वीडियो में बताई गई हम ।
यूनिट-१(१.३)
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इस वीडियो लिंक में सुमिशनंदन पंतजी का इंटरव्यू प्रस्तुत किया गया है और उनका परिचय दिया गया है और उनकी सुप्रसिद्ध कविताओं की बात की गई है
सुमित्रानंदन पंत जी का जन्म मे १९९० में उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम सरस्वती था। उसके पिता गंगाधर चाय बनाने में मैनेजर थे। लकड़ी का व्यापार था। आर्थिक विकास संपन्न परिवार में सुख सुविधा के बीच बने । चौथी कक्षा तक पढ़कर एक गवर्नमेंट स्कूल में आ गए । नेपोलियन की तस्वीर देखकर बचपन में अपने रेश्मि घुंघराले बाल लंबे कर लिए थे जो जीवन भर लंबे ही रहे। बचपन के कुछ समय कोशिश बदल कर उसके अपने नाम सुमिकनंदन पंत रखकर 10 वर्ष की उम्र में अपनी सर्जनशीलता को परिणय दे दिया। अनमोापंत ने हार्मोनियम और पब्लिकेशन के संगीत पर एक दाने के साथ कविताएं और कमानी लिखना शुरू कर लिया। उसके बाद उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया। 25 वर्ष के ऊपर तक वह स्त्रीलिंग की कविताएं दिखते रहे। इस विडियो में उसके संचार माध्यम, अध्यात्मिक की बात की है इस वीडियो में सुमित्रानंदन पंतजी ने स्त्री के महत्व की बात की है वह कहते हैं कि,
"हो ना सका चरितार्थ प्रेम का स्वर्ग नारी उसमे स्थित
हृदय नहीं विकसित शोभा के देह, भाव मन अवगुण थे।"
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