Monday, 27 November 2023

यूनिट-२ : पठन और कथन कौशल्य आधारित प्रवृत्तियां |


यूनिट-२(२.१) हिंदी साहित्यि के दो उत्तम काव्य का पठन करें ।



हिंदी देश के निवासी



हिंदी देश के निवासी सभी जन एक हम,

रंग रूप वेश भासा चाहे अनेक हैं।

बोला, गुलाबी, जैसी, चंपा, चमनी,

प्यारे-प्यारे फूलो गुंठे माना में एक है।

कोयल की कूक न्यारी, पपिहे है कि तेर प्यारी,

गा रही तराना बुलबुल, राग मगर एक है।

गंगा, यमुना, ब्रह्मापुत्र, कृष्णा, कावेरी,

जाके मिल गई सागर में हुई सब एक है।

धर्म है अनेक जीनका, सार वही है,

पंथ है निराले. सब की मंजिल तो एक हैं।


  • कविता का सारांश


विविधता में एकता हमारे देश की विशेषता है। साथ विकास और शक्ति की परिचायक भी है। मानवीय एवं प्राकृतिक विविधता होने पर भी उसमें अभिन्न एक सूत्रता है। विभिन्न दृष्टांत द्वारा इस काव्य में भारत की भव्यता एवं दिव्याता का गान किया गया है।


"कोशिश करना वालों की"


लहरों से डर नौका बार नहीं मोती.

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

नन्ही पोटी जब दाना लेकर चलती है

चलती दीवारों पर सी बार फिसलती है,

मन का विश्वास रगों में साहसा भरता है।

चढ़रून जिरना गिरकर चढ़ना न अखरता है।

आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,

कोतिरों करने वालों की कभी हार नहीं होती।

डुबकीया सिंधु में गोताखोर लगाता है.

जा कर खाली हाथ लौट कर आते है।

मिलते नही सहज मोती ही गहरे पानी में,

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी भी

मुठठी उसकी बानी हर बार नहीं होती,

कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

असफलता एक चुनौती हैं. इसे स्वीकार करो,

क्या कभी रह आई, देखी और सधार करो।

जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम

संघर्ष का मैदान छोड़कर मत भागो तुमा

कुछेक किये बिना ही जय जयकार नहीं मोती,

कोशिश करने बालों की कभी हार नहीं होती।




यूनिट-२(२.३) उत्तम कहानियों में से किसी एक कहानी का आदर्श पठान करें।


  • गुरु और शिष्य की कहानी


बहुत पुरानी बात है एक गुरु और एक शिष्य थे। वे दोनों वनारस में रहते थे एक दिन किसी कार्य उज्जैन जा रहे थे। उज्जैन जाते-जाते उन्हें रास्ते में ही रात हो गई। चारों ओर घना जंगल था और अंधेरी रात थी। इस तरह रात्रि में जंगल में रुकना सुरक्षित नहीं था।


रात होने पर भी दोनों चलते रहे तभी उन्हें एक गांव दिखा है। गुरु और शिष्य दोनों ही गांव में चले गए। गांव में उन्हें एक झोपड़ी दिखलाई दी। गुरु ने शिष्य से कहा कि आज हम इसी झोपड़ी में रुकेंगे। गुरु और शिष्य दोनों झोपड़ी में गए और झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया। झोपड़ी से एक गरीब आदमी बाहर आया और गुरुजी उस व्यक्ति से बोले- हम दोनों बहुत दूर से आ रहे हैं और रात्रि अधिक हो गई है, जंगल में रहना खतरे से खाली नहीं है इसीलिए हम रात्री में यहाँ रुकना चाहते हैं


वह व्यक्तिगत गरीब अवश्य था किंतु दिल से बहुत नेक इंसान था। उसने सम्मान पूर्वक गुरु और शिष्य को झोपड़ी के अंदर बुलाया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन करवाया और रात्री में सोने के लिए विस्तर भी लगा दिए। भोजन करने के पश्चात गुरुजी ने उस गरीब व्यक्ति से पूछा तुम्हारा घर तो बहुत छोटा है किंतु तुम दिल के बहुत धनवान हो। तुम्हारी रोजी-रोटी का साधन क्या है। "


उस गरीब व्यक्ति ने गुरु के मुंह से अपनी प्रशंसा के लिए धन्यवाद दिया और बोला " मेरे पास इस गांव में सबसे अधिक जमीन है किंतु वह जमीन बंजर है जिस पर किसी भी प्रकार की खेती संभव नहीं है, इसलिए मैंने अपनी रोजी-रोटी पालन के लिए एक भैंस रखी है। उसी भैस का दूध और घी बेच कर मैं अपनी रोजी-रोटी चलाता हूं।" उस व्यक्ति की बात गुरु जी को कुछ अजीब सी लगी किंतु वह कुछ नहीं बोले और सोने चले गए। देर रात में गुरु जी उठ गए और अपने शिष्य से चलने के लिए कहा। दोनों गरीब व्यक्ति को बिना बताए घर से निकल गए और जाते-जाते गुरुजी उसकी भैंस को अपने साथ ले गए।


अपने गुरु का यह आचरण शिष्य को अच्छा नहीं लगा और वह बोला गुरुजी इस गरीब व्यक्ति के पास रोजी- रोटी का यही एकमात्र साधन है। अगर हम इसे ले गए तो यह व्यक्ति अपनी रोजी रोटी कैसे चलाएगा।' अपने शिष्य की ऐसी बातें सुनकर गुरुजी मंद- मंद मुस्कुराए और शिष्य से बोले आज से ठीक 10 वर्ष पश्चात तुम इसी स्थान पर आना और इस व्यक्ति से फिर से मुलाकात करना। ओर होने के पहले ही गुरु और शिष्य भैस लेकर उस गांव से बाहर निकल गए।


धीरे-धीरे कई वर्ष बीत गए। दस वर्ष बीतने के पश्चात चेले को गुरु जी की बात याद आई कि उसे फिर से गरीब व्यक्ति के घर जाना है। शिष्य फिर से उसी गांव गया। गाँव जाते ही उसने देखा कि जिस स्थान पर झोपड़ी थी ठीक उसी स्थान पर एक आलीशान मकान बना हुआ है। यह देख कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ ।


शिष्य मकान मालिक से मिलना चाहता था। जैसे ही शिष्य मकान के पास गया उसने उसी गरीब व्यक्ति को देखा किंतु इस बार गरीब व्यक्ति बहुत अच्छे कपड़े पहने हुआ था और देखने में बहुत ही संपन्न प्रतीत हो रहा था। शिष्य उस व्यक्ति के पास पहुंचा और बोला क्या आपने मुझे पहचाना ? मैं वही बालक हूं जो आज से 10 वर्ष पहले रात्रि हो जाने के कारण अपने गुरु जी के साथ आपके घर रुका था।


वह व्यक्ति झट से शिष्य की बातें सुनकर उसे पहचान गया और बोला हां। हां। मुझे बहुत अच्छे से बाद है। उस रात्रि अगर आप लोग मेरी झोपड़ी में नहीं आए होते तो शायद आज भी में उसी दरिद्रता में जी रहा होता। उस रात आपके जाने के बाद मेरी भैंस भी कहीं चली गई थी और मेरे रोजी-रोटी के लाले पड़ गए थे। मैंने अपनी बंजर जमीन पर मेहनत की और अथक परिश्रम के पश्चात उस जमीन को उपजाऊ बना लिया और अब उस बंजर जमीन पर मेरी हरी भरी फसलें लहरा रही है। इसी जमीन की बदौलत में आज इस गांव का सबसे संपन्न किसान बन गया हूं।"


शिष्य को अब समझ में आया कि गुरु जी उस रात उस व्यक्ति की भैंस क्यों ले गए। शिष्य के मन में अब अपने गुरु के लिए पहले से भी कई गुना अधिक सम्मान था।


शिक्षा- गुरु और शिष्य की इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि गुरु द्वारा लिए गए निर्णय देखने में भले ही कठोर लगे किन्तु वो लोगों की भलाई के लिए ही उठाये जाते हैं।

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